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उचित वैज्ञानिक योजना और विश्लेषण के साथ, हम आर्थिक रूप से व्यवहार्य और पर्यावरण की दृष्टि से सुरक्षित विकास पथ तैयार करने में सक्षम होंगे – राज्यपाल गुरमीत सिंह

News Desk by News Desk
in नैनीताल
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उचित वैज्ञानिक योजना और विश्लेषण के साथ, हम आर्थिक रूप से व्यवहार्य और पर्यावरण की दृष्टि से सुरक्षित विकास पथ तैयार करने में सक्षम होंगे – राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह

राज्यपाल एवं कुलाधिपति लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह ने किया कुविवि के जियोलॉजी विभाग द्वारा आयोजित आपदा प्रबंधन पर संगोष्ठी का शुभारम्भ कुमाऊँ विश्वविद्यालय के जियोलॉजी विभाग द्वारा “जियोहज़ार्ड रिस्क असेसमेंट एंड सस्टेनेबल डेवलपमेंट ऑफ़ उत्तराखंड हिमालय” विषय पर एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी का शुभारम्भ राज्यपाल एवं कुलाधिपति लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह द्वारा किया गया। संगोष्ठी में देश के मूर्धन्य भू-वैज्ञानिकों, प्राध्यापकों, शोधार्थियों के साथ ही विद्यार्थियों द्वारा प्रतिभाग किया गया एवं उत्तराखण्ड राज्य में आपदा प्रबंधन से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई।

संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र का शुभारम्भ करते हुए राज्यपाल एवं कुलाधिपति लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह ने कहा कि उत्तराखण्ड प्राकृतिक सौन्दर्य एवं सम्पदाओं से सम्पन्न पर्वतीय राज्य है। यहाँ पर एक ओर हिमाच्छादित पर्वत-शृंखलाएँ है तो दूसरी ओर सुदूर तक विस्तृत हरी-भरी वनराजियाँ है। मगर प्रकृति के सन्तुलन को बिगाड़ते मानवीय क्रिया-कलापों से यहाँ प्रकृति का रौद्र रूप भी यदा-कदा देखने को मिलता है. जिससे जन-धन को अपूरणीय क्षति होती है। मिट्टी के कटाव, खड़ी ढलानों और भूकंपीय गतिविधियों से क्षेत्र में मानसून के मौसम में भूस्खलन का खतरा बढ़ जाता है। उन्होंने कहा कि हमारी देवभूमि, कई ग्लेशियरों का घर है जो दुनिया भर के पर्यटकों को आकर्षित करती है। लेकिन, हमें यह भी याद रखना होगा कि जलवायु परिस्थितियाँ इन पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रही हैं, जिसके परिणामस्वरूप ग्लेशियर झीलें, बाढ़ एवं प्रकोप का कारण बनती हैं, जिससे जीवन और बुनियादी ढाँचे का नुकसान होता है। जून 2013 में घटित केदारनाथ घाटी आपदा की यादें आज भी जेहन में ताजा है।

राज्यपाल ने कहा कि भू-खतरों से जुड़े जोखिमों को कम करने के लिए, हमारे उत्तराखंड राज्य को उचित भूमि उपयोग योजना, पूर्व चेतावनी प्रणाली, पूर्वानुमान, निगरानी, सूचना प्रसार प्रणाली और आपातकालीन उपायों की आवश्यकता है। संवेदनशील क्षेत्रों में किसी भी कीमत पर निर्माण की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि हमें एक समग्र और टिकाऊ दृष्टिकोण पर काम करने की आवश्यकता है जिसमें पर्यावरण, समाज और अर्थव्यवस्था के आयाम शामिल हों।

राज्यपाल ने कहा कि दुनिया भर में, हम लगातार महासागरों, पहाड़ों और शहरों पर वास्तुकला के चमत्कार देख रहे हैं। मेरा मानना ​​है कि हमारा देश सबसे काबिल इंजीनियरों, वैज्ञानिकों, शोधकर्ताओं और शिक्षाविदों का घर है। हम एक साथ मिलकर अपनी ऊर्जा, अपने विचारों में तालमेल बिठा सकते हैं और एक ऐसे महान और उन्नत राष्ट्र का निर्माण कर सकते हैं, कि अब से पैदा होने वाला हर भारतीय भारत में पढ़ने, काम करने और रहने की इच्छा रखे।

राज्यपाल ने उत्तराखंड राज्य में विकास के खतरों को उजागर करने और क्रियान्वित करने के लिए एक विचार-मंथन सत्र लाने के अभिनव विचार के लिए कुविवि के जियोलॉजी विभाग को बधाई देते हुए कहा कि मुझे विश्वास है कि उचित वैज्ञानिक योजना और विश्लेषण के साथ, हम उत्तराखण्ड के लिए आर्थिक रूप से व्यवहार्य और पर्यावरण की दृष्टि से सुरक्षित विकास पथ तैयार करने में सक्षम होंगे, जिससे यह रहने के लिए एक सुरक्षित और खुशहाल जगह बन जाएगी।

संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए कुलपति कुमाऊँ विश्वविद्यालय प्रो० एन०के० जोशी ने कहा कि माननीय राज्यपाल एवं कुलाधिपति लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह द्वारा आपदा प्रबंधन के मोर्चे पर चुनौतियों को लेकर एवं आपदा प्रबंधन के नए वैज्ञानिक तरीकों पर कार्य करने हेतु कुमाऊं विश्वविद्यालय को निर्देशित किया गया है। उनका मानना है कि उत्तराखंड के दुर्गम पर्वतीय भाग प्राकृतिक आपदा से भी प्रभावित रहते हैं। इसके लिए उच्च शिक्षण संस्थानों को भी आपदा प्रबंधन तंत्र के मजबूत एवं प्रभावी तरीकों पर कार्य करना चाहिए। राज्यपाल के दिशानिर्देशों के क्रम में कुमाऊँ विश्वविद्यालय द्वारा “जियोहज़ार्ड रिस्क असेसमेंट एंड सस्टेनेबल डेवलपमेंट ऑफ़ उत्तराखंड हिमालय” विषय पर इस संगोष्ठी का आयोजन किया जा रहा है।

उपस्थित अतिथियों एवं प्रतिभागियों को सम्बोधित करते हुए कुलपति प्रो० जोशी ने कहा कि उत्तराखंड राज्य की विशिष्ट परिस्थितियों के दृष्टिगत प्रदेश में आपदा नीति निर्धारण के विषय में विशेष कदम उठाने की बात कही। उन्होंने कहा कि आपदाएं, प्राकृतिक या मानव निर्मित खतरों के परिणाम हैं। चूंकि हम आपदाओं को आने से नहीं रोक सकते हैं लेकिन हम हमेशा तैयार रह सकते हैं। जीवन और संपत्ति के नुकसान को कम करने के लिए उचित प्रबंधन द्वारा प्रभावों को कम कर सकते हैं। उन्होंने नीति निर्धारण में सामाजिक प्रतिभागिता के महत्व के साथ ही आपदा प्रबंधन संबंधी जानकारी को जन-जन में प्रचारित करने पर बल दिया।

जियोलॉजी विभाग द्वारा आयोजित इस संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र की शुरुआत में संयोजक प्रो० प्रदीप गोस्वामी ने गणमान्य अतिथियों एवं प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए संगोष्ठी के सत्रों का सारांश प्रस्तुत किया। साथ ही उन्होंने कुमाऊँ विश्वविद्यालय द्वारा आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में किये जा रहे कार्यों की भी जानकारी दी।

संगोष्ठी के विभिन्न तकनीकी सत्रों को सुभाष चन्द्र बोस राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन पुरस्कार एवं राष्ट्रीय भू-वैज्ञानिक सम्मान से सम्मानित डॉ० पीयूष रौतेला के साथ ही देश के वरिष्ठ भू-वैज्ञानिक डॉ० अशोक सिंह, प्रो० सी०सी० पंत, डॉ० बी०एस० कोटलिया, डॉ० आनंद शर्मा, डॉ० ए०के० पांडेय, डॉ० टी०आर० मरथा, प्रो० एस०एन० ळाभ द्वारा सम्बोधित किया गया। कार्यक्रम का सञ्चालन डॉ० रितेश साह द्वारा किया गया।

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