युवा वर्ग से लेकर तमाम उम्र के लोग नशे के चंगुल में फंसते जा रहे हैं। अब युवा वर्ग शराब की बजाय सूखे नशे यानी स्मैक, चरस व नशीले ड्रग्स के चंगुल में फंस रहे हैं। नशा हर रूप में स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह है। हालात चुनौतीपूर्ण इसलिए भी होते जा रहे हैं कि अब युवा वर्ग शराब की बजाय सूखे नशे यानी स्मैक, चरस व नशीले ड्रग्स के चंगुल में फंस रहे हैं।
नैनीताल जनपद में हल्द्वानी स्मैक के अंधेरे रास्ते पर युवाओं के कदम भटक रहे हैं। मेडिकल कॉलेज के अधीन सुशीला तिवारी अस्पताल से लेकर निजी चिकित्सकों के पास युवा नशे की लत को छुड़वाने के लिए पहुंच रहे हैं। नशे के गिरफ्त में आ रहे युवाओं की संख्या देखकर चिकित्सक चिंतित हैं। नशे के आदी लोग अलग- अलग तरह का नशा करते हैं, उसके हिसाब से अलग श्रेणी बनी हुई हैं। इसमें एल्कोहल, ओपियम समेत अन्य आते हैं। सुशीला तिवारी अस्पताल के मनोचिकित्सा विभाग के अनुसार मनोवैज्ञानिक डॉ. युवराज पंत कहते हैं कि एक महीने में करीब 15 स्मैक, अतर, डोडा, चरस, दवा के जरिए जैसे नशे की गिरफ्त में आएं लोगों को नशा छुड़वाने के लिए परिवार के लोग पहुंचते हैं। स्मैक के नशे की गिरफ्त में जो लोग आते हैं, उसमें अधिकतर की उम्र 18 से 25 साल के बीच है। यह चिंता का विषय है। अगर एल्कोहल की बात करें तो इसमें 35 वर्ष से अधिक के लोग पहुंचते हैं, जिनके जीवन पर नशे के कारण प्रभावित हुआ है। वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. मनोज त्रिवेदी कहते हैं कि एक महीने में नशे की लत के इलाज के लिए करीब 70 नए मरीज पहुंचते हैं, इसमें आधे ओपियम ग्रुप के होते हैं। इस ग्रुप में स्मैक समेत दूसरे नशे शामिल होते हैं। बीते सालों की तुलना में कुछ संख्या बढ़ी है, इसका एक कारण लोगों की जागरूकता भी हो सकती है कि वे इलाज के लिए पहुंच रहे हैं। एल्कोहल के नशे की चपेट वाले भी कई लोग इलाज के लिए पहुंचते हैं।